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Showing posts from June, 2021

जयपुर। भीम आर्मी व आजाद समाज पार्टी, कांशीराम की संयुक्त प्रदेश स्तरीय समीक्षा मीटिंग जयपुर में की गई।

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जयपुर। आज भीम आर्मी भारत एकता मिशन, राजस्थान व आजाद समाज पार्टी, कांशीराम की संयुक्त प्रदेश स्तरीय मीटिंग डॉक्टर भीमराव अंबेडकर वेलफेयर सोसाइटी जयपुर में रखी गई। जिसमें आसपा प्रदेश अध्यक्ष अनिल धेनवाल व भीम आर्मी प्रदेश अध्यक्ष सत्यवान सिंह मेहरा ने सभी पदाधिकारियो से जिलों की समीक्षा बैठक ली व संगठन व पार्टी के विस्तार को लेकर भी गहन चर्चा हुई।  आजाद समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अनिल धेनवाल ने कहा कि प्रदेश में महिलाओं पर आए दिन जुल्म व अत्याचार होता है लेकिन सरकार खामोश है। पेट्रोल व बिजली की बढ़ती मंहगाई तथा शोषण व महिला अत्याचार की घटनाओं को लेकर केन्द्र व राज्य सरकार के खिलाफ 7 जुलाई को प्रदेश व्यापी आंदोलन किया जाएगा। आगे बोलते हुए अनिल धेनवाल ने कहा कि राजस्थान सरकार प्रदेश को चलाने में नाकामयाब रही है। किसान मजदूर से लेकर बड़े कारोबारी तक सब परेशान हैं। पेट्रोल डीजल व अन्य खाने की वस्तुओं के हर रोज बढते दाम ने आम आदमी की कमर तोड़ के रख दी। प्रदेश में कानुन व्यवस्था बिल्कुल खत्म कर दी है, सरकार अपनी मर्जी से कानुन को चला रही है। प्रदेश में बे

समाज में व्याप्त अनेक कुप्रथाएं को बंद करने की शाहूजी महाराज ने पहल की। ~John Jaipal

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लोकराजा:- शाहूजी महाराज सर्वविदित है कि वर्णव्यवस्था का वर्गीकरण ही विशेष वर्ण को समाज में उच्च स्तर बनाये रखने के लिये हुआ था। यह विशेष वर्ण हमेशा सामाजिक क्रांति, प्रगति के विरुद्ध ही रहता था। वह अज्ञानता व अंधविश्वास को बढ़ाकर समाज में अपने पद को हमेशा सर्वोच्च बरकरार रखता था। इक्कीसवीं सदी रचनात्मकता, सृजनात्मक व नवपरिवर्तन की सदी है। आज की भारतवर्ष की परिस्थिति देखकर शासक कौम में जो ईमानदार वर्ग है वह भी कह उठता है हमारी अपनी वर्तमान की अनैतिक दृष्टि, निकम्मापन और दयनीय दशा देखकर हमें अपने वैभवशाली विगत पर भी शंका होने लगती है कि कही वह सब मनगढ़त तो नहीं थी। छत्रपति शाहूजी महाराज के समय महाराष्ट्र में बहुजन आंदोलन गर्त में जा रहा था। लोगों का मानवाधिकार हनन हो रहा था। बहुजन बराबरी के लिये कोई आंदोलन चला नहीं पा रहे थे। लोकराजा शाहूजी महाराज की प्रारंभिक शिक्षा फ्रेजर की देख रेख में हुई थी। अगर फ्रेजर की जगह कोई विशेष वर्ण का उनका शिक्षक होता तो शायद उसे इतिहास में जगह ही नहीं मिलती। बाल्यावस्था में शिक्षा का बड़ा महत्व होता है। शिक्षा का मतलब किताबें पढ़ना नहीं है। बल्कि

सामाजिक असमानता पर सन्त कबीर कहते है कि:-जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान। मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान ॥

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आइये, जुड़िये कबीर से... तथागत बुद्ध के सामाजिक दर्शन से भारत देश में मौर्य साम्राज्य की स्थापना हुई थी। बौद्ध दर्शन के कारण ही भारत दुनियां में शुमार हुआ। एक सत्ता की धर्म व संस्कृति सीढियां होती है। सम्राट अशोक ने जब बौद्ध धर्म को राजकीय धर्म के रूप में अपनाया था तब भारत की सीमाएं वर्तमान श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, पाकिस्तान, अफगानिस्तान तक थी। बौद्ध धर्म की श्रमण संस्कृति ने भारत की ख्याति जापान, चीन, थाईलैंड, वियतनाम, कम्बोडिया, मलेशिया आदि देशों तक फैला दी। कलिंग युद्ध के बाद अशोक में धम्म को अपना दिया। धम्म प्रचारकों के माध्यम से उन्होंने समता,करुणा, मैत्री की धारणा को विस्तृत किया। श्रमण संस्कृति के कारण ही मूलनिवासी समाज को अपने स्वाभिमान को पहचान हुई। वैदिककाल में स्थापित चतुर्वर्णीय व्यवस्था मौर्यकालीन भारत मे कमजोर पड़ गयी थी। जब पुष्यमित्र शुंग द्वारा अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ की हत्या कर दी गयी। तब से एक बार फिर सामाजिक असमानता जोरों से पनपने लग गयी। सत्ताधीशों व उनके विलक्षणविदों द्वारा निम्न कौम को जातियों में विभाजित कर उनकी एकता को विभेद कर दिया। इन