समाज में व्याप्त अनेक कुप्रथाएं को बंद करने की शाहूजी महाराज ने पहल की। ~John Jaipal


लोकराजा:- शाहूजी महाराज

सर्वविदित है कि वर्णव्यवस्था का वर्गीकरण ही विशेष वर्ण को समाज में उच्च स्तर बनाये रखने के लिये हुआ था। यह विशेष वर्ण हमेशा सामाजिक क्रांति, प्रगति के विरुद्ध ही रहता था। वह अज्ञानता व अंधविश्वास को बढ़ाकर समाज में अपने पद को हमेशा सर्वोच्च बरकरार रखता था। इक्कीसवीं सदी रचनात्मकता, सृजनात्मक व नवपरिवर्तन की सदी है। आज की भारतवर्ष की परिस्थिति देखकर शासक कौम में जो ईमानदार वर्ग है वह भी कह उठता है हमारी अपनी वर्तमान की अनैतिक दृष्टि, निकम्मापन और दयनीय दशा देखकर हमें अपने वैभवशाली विगत पर भी शंका होने लगती है कि कही वह सब मनगढ़त तो नहीं थी। छत्रपति शाहूजी महाराज के समय महाराष्ट्र में बहुजन आंदोलन गर्त में जा रहा था। लोगों का मानवाधिकार हनन हो रहा था। बहुजन बराबरी के लिये कोई आंदोलन चला नहीं पा रहे थे।

लोकराजा शाहूजी महाराज की प्रारंभिक शिक्षा फ्रेजर की देख रेख में हुई थी। अगर फ्रेजर की जगह कोई विशेष वर्ण का उनका शिक्षक होता तो शायद उसे इतिहास में जगह ही नहीं मिलती। बाल्यावस्था में शिक्षा का बड़ा महत्व होता है। शिक्षा का मतलब किताबें पढ़ना नहीं है। बल्कि आदमी के खुद की चरित्र व स्वाभिमान की पहचान स्वयं करना ही शिक्षा है। अन्यथा कोई बड़े से बड़े अधिकारी भी बन जाता है अगर उसमें सामाजिक प्रेम व स्वाभिमान नहीं है तो वह लाचार, घुटन वाला जीवन व्यतीत करता है। राज्य की सत्ता हाथ में लेने से पहले शाहूजी ने पूरे राज्य का दौरा किया। वे पहले लोकराजा हुए जिन्होंने राज्य की जनता के साथ घुलमिलकर पूछताछ की। जब उनके राज्य में प्लेग का महाप्रकोप फ़ैला तो उन्होंने जनता को भगवान भरोसे नहीं छोड़ा। उन्होने तुरंत ही राहत योजनाओं शुरू करवायी। लगान वसूली बन्द कर दी। वे स्वयं पीड़ित इलाको में गए। उस दरमियान शाहूजी अविरल कार्य करते थे। जब उन्होंने सामाजिक समानता की प्रतिस्थापना करने के लिये अपने अधीनस्थ निम्न तबकों के लोगो को भी रखना प्रारंभ कर दिया। तब कुछ विशेष वर्ण की शक्तियां उन्हें बदनाम व अपमानित करने की कोशिशें करने लगी। लेकिन शाहूजी महाराज समानता के पक्षधर में डटे रहे।

कोल्हापुर मराठों का राज्य था, परन्तु राज्य की कमान यूरोपियन, पारसी व उच्च वर्ण के हाथों में थी।  अपने लंदन दौरे के दौरान उन्होंने एक अभूतपूर्व क्रांतिकारी घोषणा पत्र प्रसिद्ध किया। उसके तहत सरकारी सेवाओं में पचास प्रतिशत प्रतिनिधित्व की बात कही गयी। तब उच्च वर्ण द्वारा जो कि करीब जनसंख्या में तीन प्रतिशत थे। शाहूजी महाराज की तीखी आलोचना में लग गए। यह विवाद और भी तूल पकड़ता गया। आखिरकार शाहूजी ने कह ही दिया तुम लोग रजवाड़ों से चलते बनो, इस तरह का बेवकूफ व लोगों को गुलाम बनाने का धंधा छोड़ दो। शाहूजी महाराज ने प्रशासन में करप्शन को मिटाने के लिये अथक शुरुआत की। जब उन्होंने कोल्हापुर के जिला दंडाधिकारी को करप्शन के कारण निलंबित कर हुक्म निकाला कि सरकारी नौकर अपने या रिश्तेदारों के लिये धन्धा नहीं कर सकते है, ना ही जायदाद गिरवी व खरीद सकते है।

समाज में व्याप्त अनेक कुप्रथाएं को बंद करने की शाहूजी महाराज ने पहल की। जब तिलक व उनके सहयोगी पुनर्विवाह का विरोध करते थे। अनेक दलित जातियां उच्च वर्ण का शिकार होती थी। विधवाओं का जीवन असभ्य था। तब शाहूजी ने रिमेरिज रजिस्ट्रेशन लॉ बनाया। इससे विवाह को प्रक्रिया को सरल किया गया। मंदिरों का शाहूजी महाराज ने सरकारीकरण कर दिया। मन्दिर के एक तरफ स्कूल खोलने का हुक्म दे दिया। मन्दिर में आया धन स्कूली शिक्षा में लगाकर लोगो में शिक्षा का प्रसार किया। देवधर्म के नाम पर अज्ञानता फैलाना शाहूजी को नापसन्द था। वे कहते थे कि उच्च वर्ण की धार्मिक शिक्षा के कारण सर्व सामान्य जनता अज्ञानता और भोली समझ के कारण दीन-हीन हो गयी है। पिछड़े वर्गों को गरीबी, दरिद्रता, और दुःखों के पँचड़ो में से बाहर निकालना मेरा पवित्र कार्य है। ऐसा में सचमुच मानता हूं और ये मेरा पवित्र कर्तव्य करने में मैं पिछड़े वर्गों की सेवा करता हूँ ऐसा नहीं मैं तो मानवजाति की सेवा करता है। ऐसी ही मेरी पवित्र भावना है।

बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर ने मूकनायक साप्ताहिक समाचार पत्र शाहूजी महाराज के सहयोग से प्रारंभ किया। दक्कन में आयोजित बहिष्कृत समाज की बैठक में शाहूजी ने कहा जो लोग अपने देश के बंधुओ से पशु से ही क्या गोबर से एवं विष्ठा से भी निकृष्ट मानते है व उनका स्पर्श हुआ तो वे स्वयं को शुद्ध करते है। ऐसे लोग नेता बनने की ख्वाहिश रखे तो यह कितनी बेशर्मी की बात है। आगे वे कहते है कि मेरा यह मानना है कि अम्बेडकर तुम्हारा उद्धार करने में कोई कमी नहीं रखेंगे, इतना ही नहीं एक दिन ऐसा भी आएगा कि वे सम्पूर्ण भारत के सबसे लोकप्रिय नेता भी होंगे। 1922 ईस्वी में सबको सलाम कहते हुए शाहूजी महाराज ने अंतिम सांस ली। परन्तु शाहूजी के नेतृत्व के नीचे सामाजिक स्वंतत्रता की शक्ति फिर से जी उठी। महात्मा ज्योतिराव फुले के सामाजिक कार्य को गति मिली जो आगे जाकर बाबा साहेब के तूफानी कार्यों से वह क्रांति जंगल की आग की तरह चारों दिशाओं में फैल गयी।

छत्रपति शाहूजी महाराज को नमन।

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John Jaipal

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