विवाह में मंगल-सूत्र तो एक गौरवशाली बौद्ध परम्परा है लेकिन अब वह विकृत रुप में चारों ओर फैली हुई है...

विवाह में मंगल-सूत्र तो एक गौरवशाली बौद्ध परम्परा है लेकिन अब वह विकृत रुप में चारों ओर फैली हुई है...



सूत्र शब्द के कई अर्थ है.पालि भाषा में इसे 'सुत्त' कहते है.
सूत्र यानी धागा. सुंदर, सुगंधित फूलों को माला का रूप देने वाला धागा. गणित में सूत्र यानी फार्मूला जिसे एप्लाई  करने पर प्रॉब्लम को सॉल्व किया जाता है.

भगवान बुद्ध की शिक्षाओं, वचनों, देशनाओं (उपदेशों) को भी सूत्र (सुत्त) कहते हैं. इन उपदेशों के संग्रह का विशाल ग्रंथ है 'सुत्त पिटक'.(पिटक=पेटी. पिटारा. ज्ञान का खजाना)
शाक्यमुनि बुद्ध के सूत्र भी माला के धागे और लाइफ की प्रॉब्लम्स को सॉल्व करने वाले मैथ्स के फॉर्मूले जैसे हैं. बुद्ध के उपदेशों के सूत्रों के बिखरे हुए मोतियों या चुने हुए फूलों से जीवन की माला बनती है. ऐसी माला से मनुष्य जीवन सुख शांति की सुगंध से भर जाता है. इन सूत्रों की पालना से जीवन की कई  समस्याओं का समाधान मिलता है.
मंगलसूत्र क्या है?--
तीन पिटक-- विनय पिटक, सुत्त पिटक और अभिधम्म पिटक. सुत्त पिटक में कई तरह के सूत्रों का संग्रह है जिनका जन्म, विवाह, मंगल अवसरों, विपदा आदि पर संगायन (पठन) किया जाता है.जैसे महामंगलसुत्त, कालामसुत्त, रतनसुत्त, पराभाव सुत्त ,देवआहवान सुत्त आदि हजारों सूत्र.
बौद्ध काल में मंगल परिणय (विवाह) के समय किसी बौद्ध विद्वान द्वारा 'मंगल-सुत्त' के पठन के साथ वर वधु का विवाह संपन्न कराया जाता था. इस सुत्त में बुद्ध ने गृहस्थ के सुखी जीवन के लिए 38 मंगल कर्मों का महत्व बताया है.आज भी बुद्ध अनुयायी परिवारों में ऐसा ही होता हैं. जितनी देर इस सुत्त का पठन होता है उतनी देर कन्या का पिता वर वधु के मिले हुए हाथों (पाणि ग्रहण) पर जल अर्पित कर संस्कार संपन्न कराता है (पाणि =हाथ). लेकिन सुहाग के प्रतीक किसी आभूषण हार पहननाने का अंधविश्वास नहीं था.
पठन पूरा होने पर उपस्थित जन समूह तीन बार साधु, साधु, साधु का उदघोष करता है. पहले 'साधु' उदघोष पर वर, वधु के गले में माला डालता है. दूसरे 'साधु' उदघोष पर वधु, वर को माला अर्पित करती हैं. और तीसरे 'साधु' उदघोष पर जनसमूह वर-वधु पर फूलों की वर्षा कर उन्हें उपहार व आशीष देता है, मंगलमय सफल गृहस्थ जीवन की आशीष.

बाहरवीं शताब्दी में जब बौद्ध परंपराओं पर हमला कर कमजोर किया गया, फिर लुप्त हो गई तो विवाहों में मंगलसूत्र के पठन की परम्परा भी विलुप्त हो गई. लेकिन दूसरी मान्यताओं वालों ने इस महान परम्परा को ले लिया और मंगलसूत्र पठन की बजाय वधु के गले में एक हार का आभूषण पहनाया जाने लगा जिसे वे मंगल-सूत्र कहते हैं. स्वार्थ के लिए कई तरह के दान भी जोड़ दिये.
यह उस महान गौरवशाली बौद्ध परंपरा का विकृत रूप है. अब मंगलसूत्र को महिलाएं अपने सौभाग्य व सुहाग का प्रतीक मानती हैं जो एक अंधविश्वास हैं.
दरअसल सुखी मंगलमय जीवन का प्रतीक तो भगवान बुद्ध का बताया हुआ वह 'महामंगलसूत्र' उपदेश है जिसमें 38 मंगलकारी कर्मों का जिक्र हैं जिसकी पालना नहीं करने से और बुद्ध की देशनाओं को भूल जाने से मानव जीवन में दुख या अमंगल होने की आशंका रहती है.
भगवान बुद्ध के अनुयायियों की यह कोशिश होनी चाहिए कि बुद्ध की शिक्षाओं का महामंगलसूत्र नहीं टूटे. जीवन का मंगल इसी में है. मानव का कल्याण इसी में है.

भवतु सब मंगल.......सभी प्राणी सुखी हो 
   
आलेख फैसबुक वाल से:- डॉ.एम एल परिहार,जयपुर

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