यह है बैराठ (जयपुर). सम्राट अशोक ने बुद्ध और धम्म की शरण के बाद पाटलिपुत्र से तीनसौ दिनों की गुप्त यात्रा में यहीं वर्षावास और विपस्सना साधना की थी.

ह है बैराठ (जयपुर). सम्राट अशोक ने बुद्ध और धम्म की शरण के बाद पाटलिपुत्र से तीनसौ दिनों की गुप्त यात्रा में यहीं वर्षावास और विपस्सना साधना की थी.
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जयपुर दिल्ली मार्ग पर जयपुर से 80 किमी दूर स्थित बैराठ (विराटनगर) बुद्ध, धम्म, कला व संस्कृति का एक प्रमुख केन्द्र था. जिसका विवरण ह्नवान सांग ने 634 ई. मे अपनी यात्रा में दिया है. 
     सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद धम्म की शरण जाने पर राजधानी पाटलिपुत्र से 300 दिन की गुप्त यात्रा की थी, वह बैराठ की यात्रा ही थी. हजारों किमी दूर यहां आकर सुंदर पहाड़ियों पर स्थित कई बौद्ध विहारों व स्तूपों में अशोक ने चार माह का वर्षावास और विपस्सना साधना की थी. 
      धम्म, साधना व संस्कृति का यह प्रसिद्ध क्षेत्र खूब विकसित हुआ लेकिन 11वीं सदी मे आक्रमणकारियों ने काफी तबाह कर दिया. फिर अगले छ: सौ साल तक यह गौरवशाली स्थान गुमनाम रहा लेकिन सन् 1840 में ब्रिटिश ऑफिसर कार्लाइन व कनिंघम ने इसे ढूंढ निकाला.1872-75 तक खुदाई हुई.
    सम्राट अशोक के शासन के तेरहवें साल में इस धम्म यात्रा के बाद देश में तेरह विशाल शिलालेख बनवाए थे. उसमें से एक बैराठ में स्थापित किया. यहां पर कई बौद्ध प्रतिमाएं, तांबे के बर्तन, भिक्षापात्र, मुद्राएं, स्तूप व विहारो के खंडहर मिले हैं जो आज भी यहां की बीजक पहाड़ी पर मौजूद है. यहां से खुदाई में मिली सारी सामग्री बैराठ व कोलकाता म्यूजियम में सुरक्षित है.


    यहां का शिलालेख बहुत दुर्लभ है जिसमें सम्राट अशोक में बुद्ध, धम्म और संघ के प्रति गहरी श्रद्धा व्यक्त की है. जीवन में त्रिपिटक की महिमा व चार आर्य सत्य का महत्व बताया गया है....लेकिन धम्म का यह प्रमुख केन्द्र आज काफी उपेक्षित है. 
 
आलेख :डॉ.एम एल परिहार, जयपुर
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