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Showing posts from May, 2020

जीवन में क्रांति इसी पल घट सकती है, बदलाव इसी क्षण हो सकता है, दुख अभी दूर हो सकते हैं. बस, अपनी क्षमता व शक्ति पर श्रद्धा चाहिए...

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जीवन में क्रांति इसी पल घट सकती है, बदलाव इसी क्षण हो सकता है, दुख अभी दूर हो सकते हैं. बस, अपनी क्षमता व शक्ति पर श्रद्धा चाहिए...   कौसल नरेश प्रसन्नजीत के पास बद्धरेक नाम का एक महाबलवान हाथी था. उसके बल और पराक्रम की कहानियां दूर-दूर तक फैली थी, लोग कहते थे कि युद्ध में उस जैसा कुशल हाथी कभी नहीं देखा. बड़े-बड़े सम्राट उसको खरीदना चाहते थे. उसकी सिंघाड़ ऐसी थी कि दुश्मनों के दिल बैठ जाते थे.उसने अपने मालिक कौसल नरेश की बहुत सेवा की थी. कई युद्धों में नरेश को जिताया था. हाथी बुढा हुआ. एक दिन तालाब में नहाते समय कीचड़ में फंस गया. बुढ़ापे ने इतना कमजोर कर दिया कि कीचड़ से अपने को निकाल नहीं पाया. बहुत कोशिश की लेकिन नाकामयाब रहा. राजा के सेवकों ने भी बहुत कोशिश की पर सब असफल रहे. प्रसिद्ध हाथी की ऐसी दुर्दशा देख सभी दुखी हुए. तालाब पर भीड़ इकट्ठी हो गई. आखिर हाथी पूरी राजधानी का चहेता था, गांव भर में उसके प्रेमी थे. बालक और बुजुर्ग सभी उसे चाहते थे. राजा ने कई महावत भेजें लेकिन सभी हार गये. कोई उपाय ही नहीं दिखाई दे रहा था. तब राजा खुद गया वह भी अपने प्रिय सेवक को इस दशा में देख बहुत

यह है बैराठ (जयपुर). सम्राट अशोक ने बुद्ध और धम्म की शरण के बाद पाटलिपुत्र से तीनसौ दिनों की गुप्त यात्रा में यहीं वर्षावास और विपस्सना साधना की थी.

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य ह है बैराठ (जयपुर). सम्राट अशोक ने बुद्ध और धम्म की शरण के बाद पाटलिपुत्र से तीनसौ दिनों की गुप्त यात्रा में यहीं वर्षावास और विपस्सना साधना की थी. ------------------------------------ जयपुर दिल्ली मार्ग पर जयपुर से 80 किमी दूर स्थित बैराठ (विराटनगर) बुद्ध, धम्म, कला व संस्कृति का एक प्रमुख केन्द्र था. जिसका विवरण ह्नवान सांग ने 634 ई. मे अपनी यात्रा में दिया है.       सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद धम्म की शरण जाने पर राजधानी पाटलिपुत्र से 300 दिन की गुप्त यात्रा की थी, वह बैराठ की यात्रा ही थी. हजारों किमी दूर यहां आकर सुंदर पहाड़ियों पर स्थित कई बौद्ध विहारों व स्तूपों में अशोक ने चार माह का वर्षावास और विपस्सना साधना की थी.        धम्म, साधना व संस्कृति का यह प्रसिद्ध क्षेत्र खूब विकसित हुआ लेकिन 11वीं सदी मे आक्रमणकारियों ने काफी तबाह कर दिया. फिर अगले छ: सौ साल तक यह गौरवशाली स्थान गुमनाम रहा लेकिन सन् 1840 में ब्रिटिश ऑफिसर कार्लाइन व कनिंघम ने इसे ढूंढ निकाला.1872-75 तक खुदाई हुई.     सम्राट अशोक के शासन के तेरहवें साल में इस धम्म यात्रा के बाद देश में तेरह विशाल शिलालेख ब