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आषाढ़ी पूर्णिमा: बुद्ध का पहला धम्म उपदेश धम्मचक्क पवत्तन दिवस - एम एल पड़िहार

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आषाढ़ी पूर्णिमा : बुद्ध का पहला धम्म उपदेश धम्मचक्क पवत्तन दिवस- एम.एल.पड़िहार -------------------------------------------- आषाढ़ी पूर्णिमा का मानव जगत के लिए ऐतिहासिक महत्व है. लगभग ढाई हजार साल पहले और 528 ईसा पूर्व 35 साल की उम्र में सिद्धार्थ गौतम को बोधगया में बुद्धत्व की प्राप्ति हुई और बुद्ध बने.  महाकारुणिक सम्यकसम्बुद्ध ने बुद्धत्व प्राप्ति के दो महीने बाद आषाढ़ी पूर्णिमा के दिन सारनाथ में पञ्चवर्गीय भिक्खुओं कौण्डिन्य, वप्प,भद्दीय,अस्सजि और महानाम को अपना पहला ऐतिहासिक धम्म उपदेश दिया था. जिसमें कहा--  'भिक्षुओं ! बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय लोकानुकंपाय, अर्थात बहुत जनों के हित के लिए, ज्यादा से ज्यादा लोगों के कल्याण के लिए, उन पर अनुकंपा करते हुए चारिका करो. एक जगह इकट्ठा होने की बजाय अलग अलग दिशाओं में विचरण कर धम्म की देशना दो. बहुजन यानी ज्यादा से ज्यादा लोगों को दुख दूर करने व सुखी जीवन का मार्ग बताओ .प्रेम करुणा व मैत्री का प्रचार प्रसार करो.        इस उपदेश के माध्यम से तथागत बुद्ध ने प्राणि मात्र के कल्याण के लिए 'धम्म का चक्का' घुमा कर भिक्खुसंघ की स्थापना की